Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Harsh Mahakavi, Sanadhya Shastri
Publisher: Krishnadas Academy Varanasi

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Page 264
________________ ७२ नैषधमहाकाव्यम् कयोर्भाव क्रिययोः ष्यञ् । क्वचिच्च वुञ् 'औचित्यमौचिती मैत्र्यं मैत्री वुञ् प्रागुदा. हृतमि'त्यमरश्च । न मुमुचे न तत्यजे । भर्तुः समुद्रस्य चन्द्रोदये वृद्धिदर्शनातस्य अपि तथा वृद्धिरुचिता। 'आर्ति मुदिते हृष्टा प्रोषिते मलिना कृशा । मृते हि म्रियते या स्त्री सा स्त्री ज्ञेया पतिवता ॥' इति स्मरणादिति भावः । अत्राभ्रगङ्गायाः यदगारेत्यादिना विशेषणार्थासम्वन्धेऽपि सम्बन्धोक्तेरतिशयोक्तिः, तथा च यदगाराणामतीन्दुमण्डलमोन्नत्यं गम्यते तदुत्थापितां चेयमस्याः पातिव्रत्यधर्मापरित्यागोत्प्रेक्षेति सङ्करः, सा च व्यञ्जकाप्रयोगाद् गम्या ।। ८९ ॥ __ अन्वयः-यदगारघटाट्टकुट्टिमस्रवदिन्दूपलतुन्दिलापया अभ्रगङ्गया प्रतिचन्द्रोदयं प्रतिव्रतौचिती न मुमुचे । हिन्दी-जिसके आवासों की अटारियों की ऊपर की छत में लगी द्रवीभूत होती ( पिघलती ) चंद्रकांतमणियों से बहते प्रचुर जल से आकाशगंगा ने प्रत्येक चंद्रोदय के अवसर पर ( पूर्णिमा में ) पतिव्रताओं के लिए उचित धर्म को नहीं छोड़ा। टिप्पणी-कुडिनपुरी के आवास इतने ऊँचे थे कि चन्द्रोदय के अवसर उनकी छतों पर लगी चंद्रकांत मणियाँ पिघलकर अपने प्रचुर जल से आकाश गंगा में जलवृद्धि कर देती थी। नदियों का पति है समुद्र, प्रत्येक चंद्रोदयपर्व पूर्णिमा को समुद्र में ज्वार आ जाता है, उसके संसर्ग से समुद्र पत्नी गंगा में भी ज्वार आ जाता है, इस प्रकार पति के हर्ष में हर्षित गंगा भागीरथी पातिव्रत्य का आचरण करती है । परन्तु क्या करे आकाशगंगा, कैसे उसमें ज्वार उत्पन्न हो? कुडिनपुरी-प्रासादों की अटारियों की चंद्रकांतमणियाँ पिघल कर इसमें सहायक बन जाती हैं और आकाशगंगा का पातिव्रत रह जाता है । विद्याधर के अनुसार यहाँ अतिशयोक्ति-काव्यलिंग-उदात्त की संसृष्टि है। मल्लिनाथ ने अतिशयोक्ति-उत्प्रेक्षा का संकर माना है तथा अतिशयोक्ति अलंकार से गम्य आगारोन्नत्य के आधार पर वस्तुध्वनि ॥ ८९ ॥ रुचयोऽस्तमितस्य भास्वतः स्खलिता यत्र निरालयाः खलु । अनुसायमभुविलेपनापणकश्मीरजपण्यवीथयः ॥९०॥

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