Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Harsh Mahakavi, Sanadhya Shastri
Publisher: Krishnadas Academy Varanasi

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Page 275
________________ द्वितीयः सर्गः ८३ उपमा । चंद्रकलाख्या के अनुसार असंबंध में संबंध-कथन के कारण अतिशयोक्तिउपमा का अंगांगिभाव संकर ॥ १०१ ।। अश्रान्तश्रुतिपाठपूतरसनाविर्भतभूरिग्तवाजिह्मब्रह्ममुखौघविघ्नितनवस्वर्गक्रियाकेलिना। पूर्व गाधिसुतेन सामिघटिता मुक्ता नु मन्दाकिनी यत्प्रासाददुकूलवल्लिरनिलान्दोलेरखेलद्दिवि ॥ १०२ ।। जीवातु-अश्रान्तेति । यस्याः नगर्याः प्रासादे दुकूलं वल्लिरिव दुकूलवल्लिः दुकूलमयी पताकेत्यर्थः । अश्रान्तेन श्रुतिपाठेन नित्यवेदपाठेन पूताभ्यः पवित्राभ्यः रसनाम्यो जिह्वाभ्यः आविर्भूतेषु भूरिस्तवेषु अनेकस्तोत्रेषु अजिह्मेन अकुण्ठेन ब्रह्मणो मुखानामोघेन हेतुना विघ्निता सजातविघ्ना नवस्वर्गक्रिया नूतनस्वर्गसृष्टिरेव केलिः लीला यस्य तेन गाधिसुतेन विश्वामित्रेण पूर्व ब्रह्मप्रार्थनात्पूर्व सामि घटिता अर्घसृष्टा 'सामि त्व॰ जुगुप्सन' इत्यमरः । मुक्ता पश्चान्मुक्ता मन्दाकिनी नु आकाशगङ्गा किमनिलस्य कर्तुरान्दोलनदिवि आकाशे अखेलत् विजहारेत्युत्प्रेक्षा । एषा कथा त्रिशङ्कपाख्याने द्रष्टव्या। शार्दूलविक्रीडितवृत्तं 'सूर्याश्वमसजास्तताः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितमिति लक्षणात् ॥ १०२ ॥ __ अन्वयः-अनिलान्दोलैः यत्प्रासाददुकूलवल्लिः अभ्रान्तश्रुतिपाठपूतरसनाविभूतभूरिस्तवाजिह मब्रह्ममुखोपविनितनवस्वर्गक्रियाकेलिना गाघिसुतेन पूर्व सामिघटिता मुक्ता मन्दाकिनी नु दिवि अखेलत् । हिन्दी-पवन से डोलती जिस ( नगरी ) के प्रासादों की ध्वजा-रूपा श्वेत चदरिया निरन्तर वेदपाठ से पवित्र रसनाओं से प्रकट होते स्तुतिगान में अकुठ ब्रह्मा के चारों मुखों द्वारा ( अर्थात् वेदपाठ से पवित्र चारों मुखों से एक साथ ब्रह्मा जी द्वारा प्रार्थना किये जाने पर ) नवीन स्वर्ग:निर्माण की जिसकी क्रीडा में विघ्न पड़ गया है, ऐसे गाधिपुत्र ( विश्वामित्र ) द्वारा अद्धंनिमित्त कर छोड़ दी गयी मंदाकिनी के समान मानो आकाश में लहराती थी। टिप्पणी--नवीन सृष्टि रचनेवाले विश्वामित्र की कथा (त्रिशंकु-उपाख्यान ) के माध्यम से आकाश में लहराती प्रासाद-ध्वजा के चित्रण द्वारा प्रासाद की अत्युच्चता द्योतित । उत्प्रेक्षालंकार । शार्दूलविक्रीडित छंद ॥१०२॥

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