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द्वितीयः सर्गः जो सूर्य में संगमन करता है, सो क्या वह अत्यंत तीक्ष्ण, धीरज की तस्कर किरणों द्वारा मुझे जलाने के लिए उससे मिलता है ?
टिप्पणी-विरही को शीतल चंद्र-किरणें भी दाहक प्रतीत होती हैं । इसके कारण की यह संभावना की गयी है कि चंद्र प्रतिमास जो सूर्य राशिस्थित होता है, सो उससे यह दाहकता ले आता है। स्वयम् तो हानि पहुंचा नहीं सकता तो अन्य की सहायता से पहुँचाता है। आकाशचारी ग्रहों का भेद आकाशचारी ही जान सकता है, 'खग' सम्बोधन को यही सार्थकता है-खे आकाशे गच्छति खगः । 'सङ्गमन' को 'दाहार्थता' में उत्प्रेक्षा के कारण फलोत्प्रेक्षा (जीवातु), अनुपमान ( साहित्यविद्याधरी ) ॥ ५८ ॥
कुसुमानि यदि स्मरेषवो न तु वज्रं विषवल्लिजानि तत् ।
हृदयं यदमूमुहन्नमूर्मम यच्चातितमामतीतपन् ॥ ५९॥ ___ जीवातु--कुसुमानीति । स्मरेषवः कुसुमान्येव यदि न तु वज्रमशनिः सद्योमरणाभावादिति भावः । तत्तथा अस्तु किन्तु विषवल्लिजानि विषलतोत्पन्नानि । यद्यस्मादमूः स्मरेषवः ‘पत्री रोप इषुद्धयोरि'ति स्त्रीलिङ्गता, मम हृदयममूमुहन् अमूर्च्छयन् मुह्यतेणौ चङ्, यद्यस्मादतितमामतिमात्रमव्ययादाम्प्रत्ययः । अतीतपन् तापयन्तिस्म, तपते? चङ् मोहतापलक्षणविषमकार्यदर्शनाद्विषवल्लिजत्वोत्प्रेक्षा ॥ ५९॥
अन्वयः-स्मरेषवः कुसुमानि यदि न वजं तु तत् विषवल्लिजानि (अथवा यदि स्मरेषवः विषवल्लिजानि कुसमानि न तु तत् वज्रम् ), यत् मम हृदयम् अमूमहन् यत् च अतितमाम् अतीतपन् ।
हिन्दी--यदि काम के बाण फूल है, वज्र नहीं, तो वे विषवल्लरी से उत्पन्न हुए हैं ( अथवा यदि कामबाण विषलता से उत्पन्न फूल नहीं हैं तो वे वज़ हैं ), जो कि मेरे हृदय को उन्होंने मूच्छित कर दिया और जो कि अत्यंत संतप्त किया।
टिप्पणी-भाव यह कि दमयंती के वियोग में नल का हृदय बेसुध और अतिसंतप्त है, पुष्पबाण विषवल्ली से जन्मे हैं, अतः विमोहित करनेवाले हैं, वे
४ नं० द्वि०