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नैषधमहाकाव्यम्
रूप में काटते कीड़ों को कीड़ा आदि खोंदने में अत्यन्त उपयोगी चोंच की नोक से मार-मार कर हटा खुजली को कुछ दूर किया।
टिप्पणी--दुर्जय दुर्ग में जा छिपे शत्रु को पकड़ कर उसका वध किया जाता है, तभी उपद्रव मिट पाता है। विद्याधर के अनुसार छेकानुप्रास, स्वभावोक्ति और श्लेष अलंकार, चंद्रकलाकार के अनुसार रूप, स्वभावोक्ति की संसृष्टि ॥ ४ ॥
अयमेत्य तडागनीडङलघु पयंत्रियताथ शङ्कितैः । उदडीयत वैकृतात् करग्रहजादस्य विकस्वरस्वरः ।। ५ ।।
जीवातु-अयमिति । अयं हंसस्तडागनीडजः सरःपक्षिभिस्तत्रत्यहंसः 'नीडोद्भवा गरुत्मन्त' इत्यमरः । लघु क्षिप्रमेत्यागत्य पर्यवियत परिवृतः, वृणोतेः कर्मणि लङ् । अथ परिवेष्टनानन्तरमस्य हंसस्य करग्रहजान्नलकरपीडनजन्याद्विकृतादेव वैकृता द्विलुण्ठितपक्षत्वरूपाद्विकारदर्शनादित्यर्थः, स्वार्थेऽण प्रत्ययः शङ्कितैश्चकितैः अतएव विकस्वरस्वरैरुच्चै?षस्तैरुदडीयतोड्डीनम् डीङो भावे लङ ॥ ५ ॥
अन्वयः--तडागनीडजः लघु एत्य अयं पर्यवियत, अथ अस्य करग्रहजात् वैकृतात् शङ्कितः विकस्वरस्वरैः उड्डीयत ।
हिन्दी--सरोवर के घोंसलों में उत्पन्न पक्षियों ( हंस आदि ) ने तुरन्त आकर उस ( हंस ) को चारों ओर से घेर लिया, तदनन्तर हाथ से पकड़े जाने के कारण उत्पन्न उसकी विकृति से आशंकित हो ऊँचे स्वर में कोलाहल करते वे उड़ गये।
टिप्पणी-'प्रकाश'-कार के अनुसार तीर्थों पर आये व्यक्ति को भी पडेपुजारी घेर लिया करते हैं और फिर झगड़ा करते, चिल्लाते हट जाया करते हैं । विद्याधर ने इसमें जातिरुक्तिलेशानुप्रास अलंकार का उल्लेख किया है और 'करग्रहजात्' को श्लिष्ट माना है। चंद्रकलाकार ने स्वभावोक्ति का निर्देश किया है ॥ ५ ॥
दधतो बहुशैवलक्ष्मतां धृतरुद्राक्षमधुव्रतं खगः । स नलस्य ययौ करं पुनः सरसः कोकनदभ्रमादिव ॥ ६ ॥