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प्रथमः सर्गः
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टिप्पणी-यह परिचय-श्लोक है, जो प्रत्येक सर्ग के अन्त में है । चिंतामणिमंत्र के अनुध्यान से श्रीहर्ष को कवित्व शक्ति प्राप्त हुई थी, जिसका उल्लेख 'नैषधीयचरित' के 'अवामावामा' ( १४६८८ ) श्लोक में है । 'वैदग्ध्यमङ्गीभणिति' ही 'वक्रोक्तिजीवित' कार के अनुसार काव्य है। विद्याधर के अनुसार यहाँ अनुप्रास-रूपक अलंकार हैं। शार्दूलविक्रीडित छन्द है, जिसके प्रत्येक चरण में उन्नीस अक्षर होते हैं, जिनका क्रम इस प्रकार है--मगण ( sss ), सगण (15), जगण (15), सगण (15), दो तगण ( 51 ), अन्तिम गुरु (5) ॥१४५ ॥
नैषधीयचरित के प्रथमसर्ग में 'चन्द्रिका' हिन्दी-ब्याख्या समाप्त ।