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ऐसे सहज जीवन का स्वामी ही मृत्यु को मंगलमय बनाता है, मृत्यु को महोत्सवमय बनाता है । अरे! महोत्सवमय जीवन तो अनेक का होता है परन्तु मृत्यु को महोत्सव बनाने वाले तो ऐसे ही सहज योगी होते हैं। ऐसे सहज योगी के लिए मृत्यु कभी अमंगल रूप नहीं होती। वे अपनी मृत्यु के द्वारा भी मृत्यु का ही अंत लाते हैं। जो 'मृत्यु' मृत्यु का ही अंत ला दे ? भला उसे अमंगल कैसे कह सकते हैं। वह मृत्यु तो मंगल-यात्रा ही कहलाएगी न ! प्राओ ! हम सब मिलकर भगवान महावीर के द्वारा निर्दिष्ट साधना-पथ पर सम्यक कदम बढ़ाएँ
और अपनी मृत्यु को मंगल-यात्रा के रूप में परिवर्तित कर दें।
शेष शुभ । ___-मुनि रत्नसेनविजय 0
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मृत्यु की मंगल यात्रा-4