Book Title: Mrutyu Ki Mangal Yatra
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 165
________________ बड़ा ही भयंकर है, खतरनाक है, संसार का सुख । सुख पाने पर राजी न होना, अनुकूलता मिलने पर राग न करना, अत्यन्त कठिन साधना है । सुख के राग, सुख की प्रासक्ति को तोड़ने के लिए ही जिनेश्वर भगवन्तों ने पुनःपुनः वैराग्यपूर्ण वैराग्यपोषक ग्रन्थों के स्वाध्याय के लिए आज्ञा फरमाई है। शास्त्रकार महर्षियों ने श्रमणों को प्रतिदिन पाँच प्रहर स्वाध्याय करने के लिए विधान किया है । वैराग्यपूर्ण ग्रन्थों के पठन-पाठन से हृदय में वैराग्य भाव दृढ़ बनता है। 'वैराग्यशतक' एक ऐसा ही श्रेष्ठ ग्रन्थ है, जिसकी एक-एक गाथा में वैराग्य रस भरा हुआ है । पुत्र, बंधु व पत्नी के राग भाव को तोड़ने के लिए 'वैराग्यशतक' ग्रंथ में कहा हैविहडंति सुना विहडं ति बंधवा वल्लहा य विहडंति । इक्को कहवि न विहडइ, ___ धम्मो रे जीव ! जिण-भरिणम्रो ॥१२॥ भावार्थ हे आत्मन् ! इस संसार में पुत्रों का वियोग होता है, बन्धुत्रों का वियोग होता है, पत्नी का वियोग होता है, एक मात्र जिनेश्वर भगवन्त के धर्म का कभी वियोग नहीं होता है। सामान्यतः संसारी जीवों को पुत्र-पत्नी आदि पर अधिक राग होता है, परन्तु मृत्यु द्वारा एक दिन उन सबका वियोग हो जाता है। परलोक की यात्रा में कुटुम्ब में से कोई भी साथ आने वाला मृत्यु की मंगल यात्रा-146

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