Book Title: Mrutyu Ki Mangal Yatra
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 163
________________ सम्मान करने वाले के प्रति राग-भाव पैदा हो जाएगा। अत: भगवान ने आज्ञा फरमाई-सम्मान की इच्छा मत करो, फिर भी कदाचित् कोई सम्मान कर दे तो तुरन्त सावधान बन जाओ, सम्मान को परिषह समझो और मन में किसी प्रकार का रागभाव न आ जाय, इसकी पूर्ण सावधानी रखो। सामान्यतः मोह व अज्ञानता के कारण जीवात्मा को दुःख पर द्वेष और सुख पर राग होता है। दु:ख पाने पर भी द्वेष न आ जाय और सुख प्राने पर भी राग न आ जाय, इसके लिए सावधानी रखना, जागृत रहना और प्रयत्नशील बनना, इसी का नाम समाधि की साधना है । आत्मा के दो कट्टर शत्रु हैं-राग और द्वेष। इन दोनों में राग अधिक भयंकर है। • द्वष भौंककर काटने वाला कुत्ता है, जिसके आगमन का पता चल जाता है, हम सावधान बन जाते हैं। • राग चुपके से चाटकर काटने वाला कुत्ता है, जिसके आगमन का हमें कोई पता ही नहीं चलता, हम सावधान भी नहीं हो पाते हैं और वह हमें काट लेता है। • द्वष का स्वरूप रौद्र/भयानक है, अतः हर कोई उसे जल्दी पहिचान लेता है, जबकि राग का स्वरूप सौम्य है, अतः उसको पहिचानना अत्यन्त कठिन है । • द्वष का स्वभाव 'कर्कश' होने से उसका तुरन्त खयाल आ जाता है। राग का स्वभाव 'मधुर' होने से मानव उसमें तुरन्त पागल हो जाता है। मृत्यु की मंगल यात्रा-144

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