Book Title: Mrutyu Ki Mangal Yatra
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 162
________________ - दुःख को सहना कुछ सरल है, परन्तु सुख को सहना/सुख में समत्वभाव धारण करना अत्यन्त कठिन है। दुःख में समाधि कुछ सरल है, सुख में समाधि अत्यन्त कठिन है। 'तत्त्वार्थ-सूत्र' का स्वाध्याय चल रहा था। अचानक मैं चौंक उठा। अरे! यह क्या ? इस सूत्र में सत्कार और अपमान दोनों को परिषह कहा है। क्या कारण होगा? सोचने लगा। . परिषह अर्थात् जिन्हें समतापूर्वक सहन करना है। अनन्तज्ञानी सर्वज्ञ भगवन्तों की दृष्टि कितनी विशाल और विराट है ! उन्होंने साधु को अपमान के प्रसंग पर सावधान रहने के लिए कहा, उसी प्रकार सत्कार के प्रसंग पर भी सावधान रहने के लिए कहा है। अपमान की तरह सम्मान में भी खतरा है। अपमान में खतरा है-द्वेष भाव का, तो सम्मान में खतरा है--राग भाव का। किसी ने अपमान किया, तुरन्त क्रोध /गुस्सा पैदा हो जाता है, अतः तीर्थंकर भगवन्तों ने प्राज्ञा फरमाई–'अपमान में सावधान रहो, हृदय में किसी प्रकार का द्वेष पैदा न हो जाय, उसकी सावधानी रखो। द्वेष भाव आ जाय तो उसका पश्चाताप करो। __उसी प्रकार किसी ने अपना सम्मान किया हो तब अभिमान का खतरा खड़ा हो जाता है। तुरन्त ही मन में यह भाव प्रा जाएगा-'मैं भी कुछ हूँ।' 'मुझे भी लोग जानते हैं, मेरी भी प्रतिष्ठा है।' सम्मान के साथ ही प्रतिष्ठा का मोह पैदा हो जाएगा। मृत्यु की मंगल यात्रा-143

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