Book Title: Mrutyu Ki Mangal Yatra
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 166
________________ नहीं है - इस सनातन सत्य की अज्ञानता के कारण ही आत्मा संसारी-कुटुम्बीजनों के राग में फँसकर धर्म का त्याग कर देती है । प्रसंगवश याद आ जाती है उस श्रेष्ठि-पुत्र की घटना - संत ने उस सेठ के इकलौते पुत्र को संसार की स्वार्थमूलकता का स्वरूप समझाया । परन्तु वह युवान मानने के लिए तैयार नहीं था । अंत में संत ने उसे प्रयोग द्वारा सिद्ध कर समझाया । संत ने कहा - 'घर जाकर द्वार पर एकदम नीचे गिर जाना, फिर बोलना - चलना बंद कर देना । किसी प्रकार की औषधि ग्रहरण मत करना । संध्या समय मैं आऊँगा । संसार के संबंधियों का तुझे यथार्थ दर्शन कराऊंगा ।' संत के निर्देशानुसार उस युवान ने वैसा ही किया । घर आते ही वह घड़ाम से नीचे गिर पड़ा । चारों ओर हाहाकार मच गया । उसे उठाकर पलंग पर सुलाया गया । अनेक उपचार करने पर भी वह स्वस्थ नहीं हो पाया । संध्या समय वह संत उस सेठ की हवेली के पास से गुजरा। सेठ ने संत को प्राग्रह करते हुए कहा -- ' कृपावतार ! मेरा पुत्र अत्यन्त दयनीय स्थिति में है, आप कृपा कर उसका इलाज करें ।' संत ने सेठ की बात स्वीकार कर ली। संत ने एक पानी भरा प्याला मंगाया और धूप-दीप आदि कर पर्दे में बैठकर मंत्रजाप करने लगा। थोड़ी ही देर बाद संत बाहर आए और बोले, 'आपके इस पुत्र पर पैशाचिक उपद्रव है, मैंने अपनी इस मंत्र - शक्ति से पिशाच को वश किया है, यदि आप इसे बचाना चाहते हो तो कोई भी व्यक्ति यह प्याला पी ले । प्याला पीने वाला व्यक्ति थोड़ी ही देर में मर जायेगा । संत की यह शर्त सुनकर सभी मृत्यु की मंगल यात्रा - 147

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