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मुनिश्री रत्नसेन विजयजी महाराज द्वारा विरचित अन्य कृतियों का
संक्षिप्त परिचय
१. वात्सल्य के महासागर-इस कृति में अध्यात्मयोगी नमस्कार महामन्त्र के अनन्य साधक स्वर्गस्थ पूज्यपाद गुरुदेव पंन्यास-प्रवर भी भद्रंकर विजयजी गरिणवर्यश्री के विराट् जीवन का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। पुस्तक प्रवश्य पठनीय है।
२. सामायिक सूत्र विवेचना-इस पुस्तक में लेखक ने 'नमस्कार महामन्त्र' से लेकर 'सामाइयवयजुत्तो' तक के सूत्रों पर विस्तृत विवेचन किया है। भाषा-शैली आकर्षक है।
३. चैत्यवन्दन सूत्र विवेचना-देवाधिदेव वीतराग परमात्मा के भाव-पूजा सम्बन्धी सूत्रों पर इस पुस्तक में सुन्दर विवेचन किया गया है। परिशिष्ट के अन्तर्गत 'प्रभु-दर्शन-पूजन विधि' का भी उल्लेख होने से यह कृति अत्यन्त प्रिय बनी है।
४. श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र विवेचना-प्रतिक्रमण अर्थात् पाप से पीछे हटना। प्रतिक्रमण एक यौगिक-साधना है, जगत् के जीवों के साथ टूटे हुए सम्बन्ध को प्रतिक्रमण द्वारा पुनः जोड़ा जाता है। प्रतिक्रमण, साधु-साध्वी, श्रावक और श्राविका के जीवन का एक प्रावश्यक अंग है। प्रस्तुत कृति में प्रतिक्रमण की विस्तृत जानकारी दी गई है, साथ में ही श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र, वंदित्तु सूत्र पर विस्तृत विवेचन है। श्रद्धालु श्रावक जन के लिए यह कृति अवश्य प्रेरणास्पद है।
मृत्यु की मंगल यात्रा-153