Book Title: Mrutyu Ki Mangal Yatra
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 164
________________ इससे सिद्ध होता है कि दुःख में समाधि रखना जितना कठिन है, उससे भी अधिक कठिन सुख में समाधि रखना है । • दुःख में जो प्राकुलता-व्याकुलता होती है, 'हाय ! हाय !' करते हैं, उसका तुरन्त पता चल जाता है, जबकि सुख में जो राग भाव होता है, उसका तुरन्त पता ही नहीं चलता है और व्यक्ति राग का गुलाम बन जाता है। जिस प्रकार बर्फीले पर्वत पर स्थिर रहना अत्यंत कठिन है, उसी प्रकार सुख में समत्व-समाधि रखना भी अत्यन्त कठिन है। सुख के राग ने भूतकाल में अनेक आत्माओं का पतन किया है। • याद करो-कंडरीक मुनि को ! एक हजार वर्ष तक चारित्र का पालन करने पर भी, भोजन के राग ने/क्षणिक सुख के - राग ने उनकी आत्मा को ७वीं नरकभूमि में धकेल दिया । • याद करो मम्मण सेठ को! धन के, सुख के राग के कारण बेचारा ७वीं नरकभूमि में पहुँच गया। • याद करो संभूति मुनि को! मासक्षमण के पारणे मासक्षमण की उग्र तपश्चर्या करने वाले तपस्वी मुनि होने पर भी स्त्री-संग के सुख के राग ने उनकी आत्मा का पतन करवा दिया। सात राजलोक ऊपर चढ़ने के बजाय वे सात राजलोक नीचे पहुँच गए। • याद करो विश्वभूति मुनि को ! उन्होंने शारीरिक शक्ति में सुख माना और संयम-साधना के फलस्वरूप शारीरिक शक्ति की मांग कर दी। काच के टुकड़े के लिए चिंतामणिरत्न को फेंक दिया। मृत्यु-10 मृत्यु की मंगल यात्रा-145

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