Book Title: Mrutyu Ki Mangal Yatra
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 160
________________ व्यक्ति या वस्तु के प्रति जहाँ दिल में ममत्व- बुद्धि जागृत होती है, वहीं उस वस्तु की प्राप्ति में राग और नाश में शोक पैदा होता है । जिस वस्तु के प्रति ममत्व-बुद्धि नहीं होगी, उस वस्तु को प्राप्ति में न तो राग होगा और न ही उस वस्तु के नाश में शोक होगा । ' एगोsहं ' - अर्थात् मैं एक मात्र आत्मा हूँ । आत्मा की गुण-सम्पत्ति ही मेरी है । दुनिया की कोई सम्पत्ति मेरी नहीं है । 'सांसारिक व्यक्ति या वस्तु के प्रति जो स्वामित्व का भाव पैदा होता है वह वास्तविक नहीं, किन्तु श्रौपचारिक है।' इस सनातन सत्य की अज्ञानता के कारण ही मोहाधीन प्रात्मा इष्ट वस्तु या व्यक्ति के संयोग में खुश होती है और उसके वियोग में अत्यन्त दुःखी होती है । परन्तु जिसे इस सनातन सत्य का सम्यग् अवबोध हो गया हो, उसे अनुकूल या प्रतिकूल संयोग-वियोग में कोई हर्ष - शोक नहीं होता है। क्योंकि वह जानता है कि संसार के सभी संयोग, वियोग में परिणत होने वाले हैं। सभी सानुकूल संयोगों के पीछे वियोग की तलवार लटक ही रही है, अतः इन संयोगों में खुश होने की कोई आवश्यकता नहीं है । ग्रन्थकार महर्षि ने ठीक ही कहा है कि 'संसार के स्वजन श्मसान भूमि में जलांजलि देकर निवृत्त हो जाते हैं ।' अनन्त की इस यात्रा में जो हमारे साथी नहीं हैं, उनके राग में डूब जाना कोई बुद्धिमत्ता थोड़े ही है । सम्यग् बोध को प्राप्त कर तुम्हारी आत्मा में भी वैराग्यबीज प्रस्फुटित हो, इसी शुभेच्छा के साथ - रत्नसेन विजय मृत्यु की मंगल यात्रा - 141

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