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६. असाता के उदय में 'शांतसुधारस, प्रशमरति तथा वैराग्यशतक' आदि ग्रन्थों का स्वाध्याय, मनन, चिन्तन आदि करना चाहिये ।
दुःख में समाधि भाव के दृढ़ीकरण के लिए 'वैराग्यशतक' की ११वीं गाथा में बहुत ही सुन्दर बात कही है । याद है न वह गाथा ?
बंधवा सुहिरो सव्वे, पियमायापुत्तभारिया । पेयवरगाओ नियत्तंति, दाऊणं सलिलंऽजंलि ॥ ११ ॥
अर्थ - 'सभी बान्धव, मित्र, पिता, माता, पुत्र, पत्नी आदि मृतक के प्रति जलांजलि देकर श्मसानभूमि से वापस अपने घर लौट आते हैं ।'
अज्ञानता और मोह के काररण व्यक्ति यह आशा रखता है कि मेरे स्वजन आदि मेरे दुःख में सहायक बनेंगे; परन्तु प्रापत्ति व मृत्यु के समय यह भ्रम खंडित हो जाता है ।
ठीक ही कहा है
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कौन याद करता है, अंधेरे वक्त के साथी को । सुबह होते ही लोग, चिराग बुझा देते हैं ।।
रात्रि में अंधेरा पड़ने पर दीपक को सभी याद करते हैं, परन्तु ज्योंही सूर्य उदय होता है, उस दीपक को बुझा देते हैं, दिन भर उसे कोई याद नहीं करता है | बस, इसी प्रकार संसार में भी जब तक स्वार्थ की सिद्धि होती है, प्रेम करते हैं और जब कार्यसिद्धि हो जाती है, देते हैं, भूल जाते हैं ।
तभी तक सभी व्यक्ति तब उसे दूर फेंक
मृत्यु की मंगल यात्रा - 139