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प्रत्येक व्यक्ति को जीना पसन्द है "मरना पसन्द नहीं है। इसके साथ इस बात को भी ध्यान में रखना है कि किसी स्वजन की मृत्यु के बाद रागजन्य शोक/संताप भी नहीं करना है ।
दुनिया के सम्बन्ध आकस्मिक हैं। इस जीवन में जिन-जिन व्यक्तियों के साथ जो-जो सम्बन्ध हुए हैं, वे सब सम्बन्ध अस्थिर और परिवर्तनशील हैं।
आज इस भव/जन्म में जिसके साथ पुत्र का सम्बन्ध हुआ है..."सम्भव है आगामी भव में उससे पिता का भी सम्बन्ध हो जाए। इस भव में जिसके साथ पत्नी का सम्बन्ध है सम्भव है आगामी भव में उसके साथ माता का भी सम्बन्ध हो जाय।
आगामी भव/जन्म की तो बात छोड़ो, मथुरा में कुबेरदत्त कुबेरदत्ता और कुबेरसेना वेश्या के बीच एक ही भव में अनेक सम्बन्ध हुए थे।
इसी जीवन में मित्र और शत्रु के बदलते हुए सम्बन्धों का क्या हमें अनुभव नहीं है ! जो व्यक्ति इस जीवन में हमारा घनिष्ट दोस्त/मित्र होता है, वही व्यक्ति कुछ वर्षों के बाद हमारा कट्टर शत्रु भी बन जाता है । जिस व्यक्ति के लिए हम अपनी जान की कुर्बानी देने के लिए भी तैयार होते हैं... सम्भव है, इस जीवन में उस व्यक्ति की जान लेने के लिए भी तैयार हो जाएँ।
संसार के सम्बन्ध तो पंखी मेले की भाँति हैं। संध्या समय वृक्ष पर अनेक पक्षी आकर इकट्ठ होते हैं परन्तु प्रातःकाल सूर्योदय होते ही सभी पक्षी अन्य-अन्य दिशा में प्रयाण कर जाते हैं। अतः वर्तमान जीवन के किसी स्वजन के वियोग में शोक
मृत्यु की मंगल यात्रा-22