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रात्रि में सोते समय इस प्रकार भावना करो --
(१) अहो ! संसार में स्वामी सेवक आदि के सम्बन्ध कितने अस्थिर हैं ? कल जो करोड़पति था आज वह 'रोड' पति (गरीब) हो गया ।
(२) कल जो अत्यन्त रूपवान और हृष्ट-पुष्ट था.'''आज वह कैंसर के भयंकर रोग से ग्रस्त हो गया ।
(३) कल जो सत्ता में था ... हजारों व्यक्ति जिसकी आज्ञा का पालन करते थे'' आज वह सत्ताहीन हो गया, उसका कोई नाम भी नहीं लेता है ।
( ४ ) कल जो भव्य महल बनाया था, आज भूकम्प के काररण धरती में विलीन हो गया ।
वैराग्य भावना के दृढ़ीकररण के लिए इस सज्झाय को तुम अवश्य याद करना, बड़ा आनन्द आएगा-तू चेत मुसाफिर चेत जरा,
क्यों मानत मेरा-मेरा है । इस जग में नहीं कोई तेरा है,
जो है सो सभी अनेरा है । स्वारथ की दुनिया भूल गया,
क्यों मानत मेरा-मेरा है ।। १ ॥
कुछ दिन का जहाँ बसेरा है,
नहीं शाश्वत तेरा डेरा है ।
कर्मों का खूब जहाँ घेरा है,
क्यों मानत मेरा-मेरा है ।। २ ।।
मृत्यु की मंगल यात्रा - 107