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भोर भयो उठ जाग मुसाफिर ! क्यों वृथा समय गुमावत है ? जो जागत है सो पाक्त है। जो सोवत है सो खोवत है।
प्रिय मुमुक्षु 'दीपक' !
धर्मलाभ ।
परमात्म-कृपा से आनन्द है।
कोई कल्पना भी नहीं थी कि इतना जल्दी तुम्हारा पत्र मुझे मिल जाएगा।
संसार के बन्धनों को तोड़कर वीतराग-पथ का मुसाफिर बनने की तुम्हारी भावना को जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई।
जब तक जगत् के पदार्थों का, संसार के सम्बन्धों का यथार्थ बोध नहीं होता है, तभी तक संसार और संसार के पदार्थों के प्रति एक झूठा आकर्षण होता है।
जिस प्रकार हाथी के दिखावे के दाँत अलग होते हैं और चबाने के दाँत अलग होते हैं, उसी प्रकार जगत् का स्वरूप भी
मृत्यु की मंगल यात्रा-123 -