Book Title: Mrutyu Ki Mangal Yatra
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 151
________________ दुनिया में भी देखते हैं--'जो गुलाम होता है, उसकी कैसीकैसी दुर्दशा होती है ?' बस, यही हालत कर्माधीन आत्मा की है। • जन्म धारण करना आत्मा का स्वभाव नहीं है, फिर भी कर्म की पराधीनता के कारण उसे अन्य-अन्य योनि में जन्म धारण करना पड़ता है । • 'मृत्यु' आत्मा का स्वभाव नहीं है, फिर भी कर्म की पराधीनता के कारण उसे बारम्बार मरना पड़ता है। • जरावस्था, रोग-शोक, आधि-व्याधि-उपाधि आदि आत्मा के स्वभावभूत धर्म नहीं हैं, फिर भी कर्म की पराधीनता के कारण आत्मा को उस प्रकार की पीड़ाएँ सहन करनी पड़ती हैं । अहो ! कितना अधिक आश्चर्य है कि प्रात्मा, अनन्त शक्ति की स्वामी होते हुए भी उसे कर्मराजा एक नट की भाँति नचाता है। देवगति और नरकगति तो परोक्ष हैं, उनकी पीड़ाओं को हम साक्षात् नहीं देख सकते हैं। मनुष्य और तिर्यंच की पीड़ाएँ तो प्रत्यक्ष हैं न ! __कत्लखाने में चीरे जाने पर पशु की क्या हालत होती होगी? जीवित सूअर को अंगारों पर सेक दिया जाता है, तब उसकी क्या हालत होती होगी ? सप्राण सर्प की चमड़ी उतार दी जाती है, तब उसे कितनी पीड़ा होती होगी? मृत्यु की मंगल यात्रा-132

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