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जब उदय होता है, तब व्यक्ति भयंकर दुःख, वेदना और संताप को प्राप्त करता है ।
वास्तव में, दूसरे प्राणी के द्रव्यप्रारणों की हिंसा कर, व्यक्ति स्वयं के भावप्राणों की ही हिंसा करता है । इससे सिद्ध होता है कि दूसरे प्राणी की हिंसा, वास्तव में स्वयं की ही हिंसा है ।
वैभव-विलासिता, सौन्दर्य व शृंगार के साधनों की प्राप्ति के लिए अनेक पंचेन्द्रिय जीवों का श्राज वध किया जाता है ।
नश्वर देह का सौन्दर्य कितने समय के लिए है? इस देह को सजाने के लिए अत्यन्त क्रूरता से प्राप्त सौन्दर्य-प्रसाधनों का उपयोग करना, कौनसी बुद्धिमत्ता है ?
जिसके दिल में मुक्ति की तीव्र अभिलाषा जगी हो, जिसके दिल में संसार के प्रति विरक्ति का भाव जगा हो, उसे सौन्दर्यप्रसाधनों के उपयोग में कोई आनन्द नहीं आता है ।
देह का सौन्दर्य क्षणिक है, आत्मा का सौन्दर्य शाश्वत है |
अतः देह के श्रृंगार का त्याग कर आत्मा के श्रृंगार के लिए प्रयत्न- पुरुषार्थ करना चाहिये ।
मृत्यु रूपी राक्षस संसारी जीवों के पीछे पड़ा हुआ है, जो सतत त्रस और स्थावर जीवों का भक्षरण कर रहा है, फिर भी उसे कभी तृप्ति का अनुभव नहीं हो रहा है ।
एक सुन्दर उपमा के द्वारा 'वैराग्य शतक' ग्रन्थ में काल के स्वरूप को समझाया गया है—
मृत्यु की मंगल यात्रा - 118