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ज्वाला नहीं ज्योति बन जलना सीखो काँटें नहीं फूल बन खिलना सीखो । जीवन में आने वाली कठिनाइयों से, डरना नहीं, समझकर चलना सीखो ||
प्रिय मुमुक्षु 'दीपक' !
धर्मलाभ |
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परमात्म- कृपा से आनन्द है ।
ग्रामीण क्षेत्रों में विहार- यात्रा सानन्द चल रही है । संयमी - जीवन के लिए ग्रामीण क्षेत्र हर तरह से अनुकूल है ।
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शहरी वातावरण में दिन-प्रतिदिन बीभत्सता / विषमता बढ़ती जा रही है । आहार-शुद्धि नष्ट होती जा रही है । शुद्ध आहार के अभाव के कारण जीवन की सात्त्विकता नष्ट होती जा रही है ।
कहावत भी है - 'जैसा खावे अन्न वैसा होने मन ।' 'आहार जैसी डकार' |
कन्दमूल, रात्रि भोजन, बासी भोजन, बैंगन, बर्फ तथा
मृत्यु की मंगल यात्रा - 109