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________________ " ज्वाला नहीं ज्योति बन जलना सीखो काँटें नहीं फूल बन खिलना सीखो । जीवन में आने वाली कठिनाइयों से, डरना नहीं, समझकर चलना सीखो || प्रिय मुमुक्षु 'दीपक' ! धर्मलाभ | 14 परमात्म- कृपा से आनन्द है । ग्रामीण क्षेत्रों में विहार- यात्रा सानन्द चल रही है । संयमी - जीवन के लिए ग्रामीण क्षेत्र हर तरह से अनुकूल है । । शहरी वातावरण में दिन-प्रतिदिन बीभत्सता / विषमता बढ़ती जा रही है । आहार-शुद्धि नष्ट होती जा रही है । शुद्ध आहार के अभाव के कारण जीवन की सात्त्विकता नष्ट होती जा रही है । कहावत भी है - 'जैसा खावे अन्न वैसा होने मन ।' 'आहार जैसी डकार' | कन्दमूल, रात्रि भोजन, बासी भोजन, बैंगन, बर्फ तथा मृत्यु की मंगल यात्रा - 109
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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