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दिन-प्रतिदिन आयुष्य रूपी पानी निकालने के कारण जीवात्मा का आयुष्य रूपी कुआ एक दिन खाली हो जाएगा और जीवात्मा को एक दिन संसार से विदाई लेनी पड़ेगी।
दिल्ली से बम्बई तक की यात्रा में यदि सीट का आरक्षण हो तो यात्री निश्चिन्त रहता है.""गाड़ी पाने के पूर्व उसे कोई चिन्ता नहीं रहती है, परन्तु टिकट या आरक्षण न हो तो सतत चिन्ता बनी रहती है, उसी प्रकार इस जीवन से विदाई के पूर्व यदि सद्गति का आरक्षण करा दिया होगा तो तुम निश्चिन्त रह सकोगे अन्यथा मृत्यु के समय हाय ! हाय ! रही तो आत्मा की दुर्गति निश्चित ही है ।
दुर्गति से बचने के लिए समाधिमय मरण आवश्यक है और समाधिमरण के लिए समाधिमय जीवन आवश्यक है ।
जिनाज्ञानुसार जीवन अर्थात् समाधिमय जीवन । समाधिमय जीवन का फल समाधिमय मरण है और समाधिमय मरण का फल सद्गति की प्राप्ति है।
समाधिमय जीवन अर्थात् समत्वयुक्त जीवन । समत्वयुक्त जीवन अर्थात् ममत्वरहित जीवन । समत्व की साधना के लिए कषायों पर जय अनिवार्य है।
ममत्व-त्याग के लिए इन्द्रिय-संयम अनिवार्य है। • ममत्व पर विजय पाने के लिए इन्द्रियों के अनुकूल विषयों का त्याग अनिवार्य है।
त्याग के लिए विरक्ति जरूरी है और विरक्ति के लिए प्रतिदिन वैराग्य की भावना जरूरी है।
मृत्यु की मंगल यात्रा-106