________________
प्रकार का उपक्रम श्राघात न लगता हो, उसे निरुपक्रम आयुष्य कहते हैं और जिस आयुष्य पर किसी प्रकार का आघात / उपक्रम लगता हो उसे सोपक्रम प्रायुष्य कहते हैं ।
अत्यन्त हर्ष और अत्यन्त शोक के समाचार से भी हृदयगति अवरुद्ध हो जाती है । कई बार रेल, मोटर आदि की दुर्घटना से भी व्यक्ति की जीवनडोर टूट जाती है और व्यक्ति का आयुष्य समाप्त हो जाता है ।
जिस व्यक्ति का आयुष्य सोपक्रमी हो, उसका अवशिष्ट आयुष्य मात्र अन्तर्मुहूर्त में समाप्त हो जाता है | उदाहरण के लिए एक व्यक्ति ने अपने पूर्व भव में अस्सी वर्ष के आयुष्य का बंध किया और इस भव में ४० वर्ष की उम्र में रेल दुर्घटना हो गई तो वह व्यक्ति अपना अवशिष्ट ४० वर्ष का आयुष्य एक मात्र अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में समाप्त कर लेगा ।
तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव और चरमशरीरी आत्माओं का आयुष्य निरुपक्रम होता है अर्थात् उन आत्माओं पर भयंकर उपसर्ग श्रा जायें तो भी उनके आयुष्य पर किसी प्रकार का उपक्रम / प्राघात नहीं लगता है । अर्थात् वे आत्माएँ अपने प्रायुष्य का सम्पूर्ण उपभोग करती हैं । मरणान्त कष्ट से भी उनके पूर्व निश्चित आयुष्य का घात नहीं होता है, जबकि सोपक्रमी आयुष्य वाली आत्माओं का प्रायुष्य रोग, उपद्रव, दुर्घटना आदि के आघात से पहले भी नष्ट हो सकता है ।
मुमुक्षु दीपक !
प्राय: करके अपना भी प्रायुष्य सोपक्रमी / सोपघाती ही है
मृत्यु की मंगल यात्रा-28