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के आधार पर मैंने जाना है कि आपने काल पर विजय प्राप्त की है, अन्यथा आप भिखारी को 'कल' आने का कैसे कहते ? '
भीम के इस उत्तर को सुनते ही युधिष्ठिर को अपनी भूल समझ में आ गई । तुरन्त हो उन्होंने याचक को बुलाकर दान किया ।
'वैराग्य शतक' की तीसरी गाथा बराबर याद कर ली होती... उसके अर्थ का थोड़ा-बहुत चिन्तन किया होता तो शायद ही तुम इस प्रकार का प्रश्न करते ?
आज इस पत्र में तुम्हें उस गाथा की हो चिन्तन-यात्रा कराऊंगा ।
जं कल्ले कायव्वं, तं प्रज्जं चिय करेह तुरमारणा बहुविग्धो हु मुहुत्तो, मा अवरहं
अर्थ - जो धर्मकार्य कल करने योग्य है, कर लो । मुहूर्त (काल) अनेक विघ्नों से अपराह्न पर मत डालो |
पडिक्लेह ॥ ३ ॥
उसे प्राज ही शीघ्र भरा हुआ है, अतः
ग्रन्थकार महर्षि हमें सावधान करते हैं कि शुभ कार्य में लेश भी देरी नहीं करनी चाहिये । संसारी जीवों पर 'काल' का 'हंटर' सतत घूम रहा है, पता नहीं, कब इसके शिकार हो जायें, कुछ भी कह नहीं सकते हैं ।
मृत्यु की मंगल यात्रा - 81
भगवान गौतम स्वामी से प्रतिबुद्ध बना बाल प्रतिमुक्तक घर आकर अपनी माँ को कहता है- 'माँ ! माँ ! मुझे दीक्षा की अनुमति दो ।'
नृत्यु - 6