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वीतराग - जिनधर्म ही आत्मा को कर्म के बन्धन से मुक्त कर सकता है । दुर्लभता से प्राप्त इस जीवन में जिनधर्म की श्राराधना-साधना के लिए प्रचण्ड पुरुषार्थं करना चाहिये इसी में जीवन की सफलता / सार्थकता है |
प्रिय 'दीपक' !
जिनधर्म के तत्त्वों को जानने के लिए तुम्हारे मन में जिज्ञासा है, यह जानकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होती है ।
सामायिक की नियमित साधना चालू ही होगी ? 'सामायिक' में समत्वयोग की साधना निहित है। सामायिक में जिनेश्वर भगवन्त - निर्दिष्ट तत्त्वों का पठन-पाठन व स्वाध्याय भी कर सकते हैं ।
जिनेश्वर - निर्दिष्ट तत्त्वों के रहस्यों को समझने का सामर्थ्य प्राप्त करो और शीघ्र मुक्तिगामी बनो, इसी शुभाभिलाषा के साथ ।
- रत्नसेन विजय
'मृत्यु
मृत्यु निश्चित भी है और अनिश्चित भी । होगी' यह निश्चित है । किन्तु कब होगी ? यह अनिश्चित है ।
मृत्यु की मंगल यात्रा - 100
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