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हैं.. उसकी पूरी सावधानी रखते हैं... परन्तु ज्योंही वह गाय वृद्ध हो जाती है, तब कोई उसकी संभाल नहीं रखता है ।
सरोवर में जब तक पानी भरा होता है, तब तक हजारों मनुष्य व पशु-पंखी वहाँ आते हैं, परन्तु ज्योंही वह सरोवर सूख जाता है, त्योंही सभी व्यक्ति उससे दूर चले जाते हैं। • संसार में प्रेम (?) करते हैं धन से । संसार में प्रेम (?) करते हैं पद से । संसार में प्रेम (?) करते हैं शक्ति से ।
अर्थात्- यदि तुम्हारे पास धन है, पद है अथवा शक्ति है तो दुनिया तुमसे प्रेम करेगी, तुम्हारे प्रति आदर भाव व्यक्त करेगी, परन्तु यदि तुम्हारे पास इनमें से कुछ भी नहीं है तो तुम्हारे हो स्वजन-मित्र तुमसे दूर रहने की कोशिश करेंगे।
इसीलिए तो प्रभु महावीर ने कहा है-संसार स्वार्थ से भरा हुआ है संसार के सम्बन्ध स्वार्थ से भरे हुए हैं।
सांसारिक सम्बन्धों की भयंकरता को लक्ष्य कर ही तो आनन्दघनजी योगिराज ने गाया है
ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे , और न चाहु रे कंत । रीझ्यो साहिब संग न परिहरे रे , भांगे सादि अनंत ॥
वे कहते हैं-युगादिदेव प्रादिनाथ परमात्मा ही मेरे प्रियतम| स्वामी हों ." मैं उन्हीं से प्रेम करना चाहता हूँ... मैं उन्हीं के चरणों में आत्म-समर्पण करना चाहता हूँ"वे ही मेरे नाथ हैं. वे ही
.. मृत्यु की मंगल यात्रा-89