Book Title: Mrutyu Ki Mangal Yatra
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 110
________________ स्पर्श करने जाता है, परन्तु ज्योंही वह श्रग्नि का स्पर्श करता है, उसे अपने प्रारण ही खोने पड़ते हैं । बस, इसी प्रकार स्त्री के क्षणिक रूप पर मोहित व्यक्ति, अपनी आत्मा के भाव - प्राणों का ही नाश करता है । श्रात्मा का सौन्दर्य पुद्गल का सौन्दर्य शाश्वत है | क्षणिक है । इन्द्र महाराजा ने सनत्कुमार चक्रवर्ती के अद्भुत रूपसौन्दर्य की प्रशंसा की थी । एक मनुष्य के रूप की इस प्रकार की प्रशंसा सुनकर दो देव ब्राह्मण का रूप धरकर हस्तिनापुर आए । P उस समय सनत्कुमार चक्रवर्ती स्नानगृह में स्नान कर रहे थे । ब्राह्मणवेष में रहे देवों ने चक्रवर्ती का रूप - सौन्दर्य निहारा और वे दाँतों तले अंगुली दबाने लगे । परन्तु उसी समय चक्रवर्ती ने कहा, 'अरे ब्राह्मणो ! रूप-दर्शन करना हो तो राजसभा में आना, अभी तो मैं वस्त्र व अलंकारों से रहित हूँ ।' चक्रवर्ती का यह कथन सुनकर दोनों ब्राह्मण चले गए । थोड़ी ही देर बाद कीमती वस्त्र और स्वर्ण-रत्न के अलंकारों से सुसज्जित होकर सनत्कुमार चक्रवर्ती अपनी राजसभा में पधारे। हजारों नर-नारियों ने चक्रवर्ती का जयघोष किया, चक्रवर्ती ने आसन ग्रहरण किया और उसी समय ब्राह्मणवेषधारी दोनों देव राजसभा में उपस्थित हुए । परन्तु यह क्या ? चक्रवर्ती के दर्शन के साथ ही उन्होंने मृत्यु की मंगल यात्रा - 91

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