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रत्न तो लाखों मिले मगर ज्ञानरत्न न मिला , धन तो हर वक्त मिला मगर चैन किसी क्षण न मिला। खोजते-खोजते ढल गई धूप जीवन की , दूसरी बार लौट के, मगर बचपन न मिला ।
प्रिय 'दीपक' !
धर्मलाभ।
परमात्मा की असीम कृपा से आनन्द है। दो दिन पूर्व ही तुम्हारा पत्र मिला था। हमारी विहार-यात्रा, संयम-यात्रा सानन्द चल रही है ।
तुमने लिखा-'धर्म-कार्य में इतनी जल्दी क्या है ? धर्मकार्य तो वृद्धावस्था में भी हो सकता है।'
प्रिय मुमुक्षु !
यही तेरी सबसे बड़ी भूल है। काल मृत्यु का कोई भरोसा नहीं है, मृत्यु तो कभी भी आ सकती है। मृत्यु के लिए किसी भी अवस्था में प्रतिबन्ध नहीं है, वह गर्भावस्था में भी आ सकती हैजन्म के साथ ही आ सकती है. बचपन में आ सकती है... जवानी में पा सकती है और वृद्धावस्था में भी पा सकती है ।
मृत्यु की मंगल यात्रा-79