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'किसी को नहीं, उस भूल की सजा सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं।
मुमुक्षु 'दीपक' ! बस। उपर्युक्त बात को तुम श्रद्धापूर्वक स्वीकार कर लोगे तो तुम्हें दुःख को अल्प अनुभूति होगी।
किसी अपेक्षा से किसी भी वस्तु घटना के सर्जन में दो कारण भी काम करते हैं-(१) उपादान कारण और (२) निमित्त कारण।
इन दोनों कारणों के संयोग से ही वस्तु व घटना का निर्माण होता है, इन दोनों में से एक भी कारण की न्यूनता से कार्य का अभाव हो जाता है। उदाहरण-घड़े के निर्माण में मिट्टी उपादान कारण है और कुम्भकार, चाक, पानी आदि निमित्त कारण हैं।
निमित्त कारण के सहयोग से उपादानभूत मूल द्रव्य ही कार्य रूप में परिणत होता है। मिट्टी रूप उपादान का प्रभाव हो तो भी घड़े का निर्माण सम्भव नहीं है और मिट्टी के सद्भाव में भी यदि कुम्भकार प्रादि का अभाव हो तो भी घड़े का निर्माण सम्भव नहीं है।
उसी प्रकार जीवन में जो कुछ भी सुख-दुःख का अनुभव होता है, उसमें उपादान कारण रूप अपनी आत्मा है और निमित्त कारण रूप कर्म हैं।
निमित्त कारण के भी दो भेद हैं—अन्तरंग निमित्त और बाह्य निमित्त ।
मृत्यु की मंगल यात्रा-57