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इंसान खोके वक्त को पाता नहीं कभी, जो दम गुजर गया, वह फिर आता नहीं कभी ।
प्रिय 'दीपक',
धर्मलाभ |
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कल तुम्हारा पत्र मिला। पढ़कर प्रसन्नता हुई । संसार के वास्तविक स्वरूप को जाने बिना दिल में विरक्ति का जन्म प्रायः असम्भव सा लगता है ।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि तुमने 'वैराग्य शतक' ग्रन्थ कण्ठस्थ करने का शुभारम्भ कर दिया है । ये गाथाएँ विशेष कठिन भी नहीं हैं । पूर्व के पुण्योदय से तुम्हारे ज्ञानावरणीय कर्म का तीव्र क्षयोपशम हुआ है ।
ज्ञानावरणीय कर्म के तीव्र क्षयोपशम से सोचने-समझने और कण्ठस्थ करने की हमें शक्ति प्राप्त होती है । परन्तु इतना ध्यान रहे कि मात्र ज्ञानावरणीय कर्म का ही क्षयोपशम हो और उसके साथ मोहनीय कर्म का क्षयोपशम न हो अथवा मोहनीय कर्म का तीव्र उदय हो तो उस क्षयोपशम से प्राप्त ज्ञान आत्मा के लिए लाभकारी नहीं बन सकता है | ज्ञान वही लाभकारी
मृत्यु की मंगल यात्रा - 72