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इन सुखों (?) के नग्न स्वरूप को तुम अच्छी तरह से जान लो तो फिर तुम्हारे दिल में स्वाभाविक ही उन सुखों के प्रति विरक्ति का भाव जागेगा और वह विरक्ति ही तुम्हें विरति-धर्म के सम्मुख ले जाएगी।
बस, आज पत्र यहीं समाप्त करता हूँ।
तुम्हारे दिल में उठे प्रतिभावों को जानने के बाद विशेष फिर लिखूगा। ......... परिवार में सभी को मेरा धर्मलाभ कहना। शेष शुभ ।
-रत्नसेनविजय
rwwmmmmmmmmmmmmmmmmon तड़फती जिन्दगी को ठुकराने वाले जन बहुत मिलेंगे, घाव पर क्षार छिड़कने वाले नर बहुत मिलेंगे। सिसकती जिन्दगी को आशा का सम्बल देकर, मन को सहलाने वाले नर यहां कितने मिलेंगे ?
मृत्यु की मंगल यात्रा-71