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और उसे जीवित दशा में ही अग्नि की भट्टी में सेक दिया जाता है।
बलवान सिंह को पिंजरे में कैद किया जाता है। विशाल काया वाले हाथी को बड़े खड्ड में गिरा दिया जाता है और जीवन भर के लिए गुलाम बना दिया जाता है।
कितना वर्णन किया जाय उन तिर्यंचों की पीड़ाओं और यातनाओं का।
स्थावर और विकलेन्द्रिय जन्तुओं की पीड़ा तो वे ही जानते हैं। शास्त्र में कहा है, निगोद में रहा हुआ जीव अपने एक श्वासोच्छ्वास में सत्रह बार जन्म और सत्रह बार मरण कर लेता है और अठारहवीं बार पुनः जन्म धारण कर लेता है ।
इस संसार में मनुष्य-जीवन में भी सुख कहाँ है ?
मनुष्य के सिर पर भी रोग, शोक, दुर्घटना, अपयश तथा मृत्यु को नंगो तलवार लटक ही रही है। कोई गरीबी और भुखमरी के कारण दुःखी है।
मनुष्य-जीवन की पीड़ाओं के साक्षात् दर्शन करने हों तो एक बार बम्बई के जसलोक अस्पताल अथवा अहमदाबाद के वी०एस० अस्पताल में चक्कर लगा लेना। ओहो ! कैसे-कैसे भयंकर रोगों से घिरे हुए दर्दी हैं ? उनके मुख से कितनी भयंकर चीसें निकल रही हैं। कोई हार्ट का दर्दी है तो कोई टी.बी. का, कोई डायबीटीज का दर्दी है तो कोई केन्सर का। किसी की आँखों में दर्द है तो किसी के कान में। किसी का हाथ कटा है
मृत्यु की मंगल यात्रा-68