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दुनिया में जितनी भी वेदनाएँ हैं-उन सब का इच्छा/ अनिच्छा से भूतकाल में अपनी आत्मा ने अनुभव कर लिया है दुनिया के सब दुःख सहे हैं।
'वर्तमान की पीड़ा भी हमारे लिए नयी नहीं है।' क्या गजसुकुमाल मुनि के सिर पर हो अंगारे डाले गए ? क्या खंधक महामूनि की ही जीवंत चमड़ी उतारी गई ? क्या भगवान महावीर के कानों में ही कीले ठोके गए ?
नहीं नहीं। ऐसी भयंकर वेदनाएँ तो हमारी आत्मा ने भी अनेक बार सहन की है, परन्तु फर्क इतना है कि हमने वे सब पीड़ाएँ अनिच्छा से रो-रोकर सहन की हैं ।
पूर्व के महापुरुषों ने दुःख के स्वीकारपूर्वक दुःख को सहन किया था और अपूर्व निर्जरा करके कर्म-बन्धन से वे मुक्त बने थे, जबकि हमने उन्हीं पीड़ाओं को अनिच्छा से सहन किया और इसी के फलस्वरूप दुःख भोगते हुए भी नये-नये कर्मों का ही सर्जन किया।
मुझे विश्वास है कि उपर्युक्त मार्गदर्शन तुम्हारे लिए पर्याप्त होगा।
जब-जब भी वेदना में अभिवृद्धि हो तब-तब पूर्व के महापुरुषों पर आई हुई आपत्तियों का विचार करना उनकी सहनशीलता का विचार करोगे तो अवश्य ही इस पीड़ा में कुछ राहत मिल सकेगी।
अपने मन को अधिक से अधिक नमस्कार-महामंत्र की साधना में एकाग्र करने हेतु प्रयत्नशील बनो। बस, आज इतना ही।
-रत्नसेनविजय
मृत्यु की मंगल यात्रा-63