________________
है। आयुष्यकर्म के क्षीण हो जाने पर प्रात्मा उस देह का त्याग कर देती है उसी को हम 'मृत्यु' कहते हैं । अपने पूर्वदेह के त्याग के बाद आत्मा पुनः नवीन देह को धारण करती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि एक देह का विसर्जन मृत्यु है । ___ जब तक आत्मा कर्मों से सर्वथा मुक्त नहीं बनती है, तब तक वह देह-रहित अवस्था में नहीं रह सकती है। अनादि काल से तैजस और कार्मण शरीर तो आत्मा के साथ ही हैं। परन्तु ये दोनों शरीर अत्यन्त सूक्ष्म हैं। ये चक्षुत्रों के अगोचर हैं । तैजस और कार्मरण शरीर को छोड़ कर दूसरे तीन शरीर हैं-औदारिक, वैक्रियिक और आहारक ।
आहारक-लब्धि धारक चौदह पूर्वधर आत्माएँ ही प्राहारकशरीर बना सकती हैं। आहारक लब्धिमंन्त चौदह पूर्वी प्रात्मा अपने किसी संशय के निवारण के लिए 'पाहारक-शरीर' का निर्माण करती है।
मनुष्य और तिर्यंचों के जन्म से ही औदारिक-शरीर होता है। देव और नारक जीवों के जन्म से ही वैक्रियिक शरीर होता है।
विक्रिया लब्धि वाले मनुष्य तथा तिर्यंच अपनी लब्धि के बल से वैक्रियिक शरीर की रचना कर सकते हैं।
देव-गति और नरक-गति के जीवों के जन्म से ही वैक्रियिक शरीर होता है और उनके पास विक्रिया लब्धि भी होती है, जिसके बल से वे जब चाहे तब उत्तर वैक्रियिक शरीर की रचना कर सकते हैं।
मृत्यु की मंगल यात्रा-26