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- ग्यारहवें 'उपशांतमोह' गुणस्थानक पर पहुँची हुई आत्मा वीतराग-सदृश होती है । उसे राग और द्वेष का लेश भी उदय नहीं होता है । परन्तु उस आत्मा को भी मोह नहीं छोड़ता है । मोह उस आत्मा पर भी जोरदार आक्रमण कर देता है. मोह के आक्रमण के साथ ही वह आत्मा घड्-धड् नीचे गिरती है और एकदम निम्नस्तर-मिथ्यात्व गुणस्थानक तक पहुँच जाती है ।
'पुत्र-मृत्यु' की जो घटना बनी है, उसे स्वीकारे बिना छुटकारा ही नहीं है। जगत् का यथार्थ दर्शन करने से पुत्र-मोह अवश्य दूर होगा और तुम अपने जीवन में शान्ति का अनुभव कर सकोगे।
बर्फीले पर्वत पर चढ़ने की भाँति ही गुणस्थानक की श्रेणी पर आरोहण करना अत्यन्त कठिन है। बर्फीले पर्वत पर चढ़ते समय थोड़ी सी सावधानी न रखी जाय तो व्यक्ति फिसलकर नीचे गिर सकता है।
बर्फीले पर्वत पर चढ़ने के लिए जितनी सावधानी और जागति की आवश्यकता है, उससे भी अधिक सावधानी की आवश्यकता गुणस्थानक पर चढ़ने के लिए जरूरी है।
अतः प्रमाद का त्याग कर आत्महित के लिए प्रयत्नशील बनना चाहिये । किसी ने ठीक ही कहा है--
जिसने जाना मूल्य समय का, वह आगे बढ़ पाया है। पालस करके जो बैठ गया, वह जीवन भर पछताया है । आराधना में उद्यमवंत रहना। परिवार में सभी को धर्मलाभ कहना। शेष शुभ ।
__-रत्नसेन विजय
मृत्यु की मंगल यात्रा-24