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पीड़ा और व्यथा होगी ?..."उस पीड़ा का एक मात्र कारण हैउस घर के साथ जोड़ा गया स्वामित्व सम्बन्ध ।
भाड़े का घर खाली करते समय कुछ भी दुःख नहीं होता है। क्योंकि तुम जानते/मानते हो कि वह घर तुम्हारा नहीं है ।
बस ! यह हमारा देह भी भाड़े का ही घर है । आयुष्य रूपी भाड़ा चुकाया है, उतने ही दिन तक इस घर में रह सकते हैं, अधिक नहीं। उसके बाद इस घर को अवश्य खाली करना ही पड़ता है।
परन्तु अफसोस ! इस भाड़ के देह-गृह को हमने अपना घर मान लिया है और इसी कारण इस देह का त्याग करते समय, इस देह की ममता के कारण हमें अत्यन्त ही पीड़ा का अनुभव होता है।
यह 'देह' हमारा चिर-स्थायी घर नहीं है । यह तो कर्म राजा ने भाड़े से रहने के लिए दिया है, अतः भाड़े की अवधि पूर्ण होते ही इसे अवश्य खाली करना ही पड़ेगा।
यह 'देह' हमारा वास्तविक घर नहीं है, इस प्रकार का सम्यग् बोध हो जाय तो इस देह का त्याग करते समय कुछ भी दुःख और पीड़ा का अनुभव नहीं होगा। समता व समाधिपूर्वक देह का त्याग कर सकेंगे और क्रमश: शाश्वत-पद के भोक्ता बन सकेंगे।
मौत निश्चित होते हुए भी उसके आगमन की तिथि/तारीख का पता नहीं है, वह दिन में भी पा सकती है और रात में भी एक तारीख से लेकर इकतीस तारीख तक और जनवरी से लेकर
मृत्यु की मंगल यात्रा-32