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खबर नहीं इस जग में मन ! कौन जाने
समझ
पल की,
कल की ?
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प्रिय मुमुक्षु 'दीपक' धर्मलाभ !
परमात्म- कृपा से प्रानन्द है ।
तुम्हारा पत्र मिला । समाचार ज्ञात हुए । पुत्र 'पराग' की अकाल-मृत्यु से तुम्हारे दिल को जो आघात लगा उस श्राघात की वेदना को प्रगट करने वाला तुम्हारा पत्र पढ़ा ।
इस संसार में जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित ही है | 'पंचसूत्रकार' ने बहुत ही सुन्दर बात कही है - संजोगो विश्रोगोकारणं ।
जहाँ संयोग है वहाँ वियोग खड़ा ही है । मोहाधीनता / अज्ञानता के कारण हम सानुकूल संयोग को स्वीकार करते हैं.... परन्तु उसके वियोग को अस्वीकार कर देते हैं ।
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सानुकूल संयोग स्वीकार है किन्तु वियोग अस्वीकार है ।
जो संयोग हमें आनन्द देता है... जिस संयोग में हम प्रसन्न बनते हैं, उसका वियोग हमें अवश्य दुःखी करता है ।
मृत्यु की मंगल यात्रा - 15