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मृत्यु-भय- - मौत श्रा जायगी तो इसका भय ।
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इन सात भयों में सबसे अधिक भय मृत्यु से होता है ।
मृत्यु के भय से सर्वथा मुक्त करने वाले अरिहन्त परमात्मा हैं । इसलिए अरिहन्त परमात्मा को 'अभयदयाणं' 'अभय दाता' कहते हैं। अरिहन्त परमात्मा की भावपूर्वक भक्ति करने से हमें 'अभय' की प्राप्ति होती है। जिसने अरिहन्त की शरणागति स्वीकार की है, उस श्रात्मा को मृत्यु का भय भी नहीं सताता है । वह श्रात्मा निर्भय बन जाती है । जीवन में निर्भयता की प्राप्ति के लिए परमात्मा की भक्ति में सतत प्रयत्नशील बने रहो । श्राराधना में उद्यमवन्त रहना । परिवार में सभी को धर्मलाभ |
शेष शुभ ।
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- रत्नसेन विजय
दीपक के प्यार में पतंगा जल जाता है,
सूरज के आने से आप न भूलना अपने
चन्द्र छिन जाता है । अस्तित्व को ए मीत ! संसार में जो प्राता है, निःसन्देह जाता है ॥
मृत्यु की मंगल यात्रा - 14