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___39 (अविकृतीकरण) और भावसुद्धि नाम से आलोचना के चार भेद किये हैं। जो माध्यस्थ भावना मय हो कर्म से भिन्न तथा निर्मल गुणों के निवास स्वरूप आत्मा का चिंतन करता है, वह भावना अविकृतीकरण है। कम्मादो अप्पाणं, भिण्णं भावेइ विमलगुणणिलयं। मज्झत्थभावणाए, वियडीकरणं त्ति विण्णेयं ।। (निय.१११) अवियत्थ वि [अवितार्थ] यथार्थ, सम्यक्, सही। (मो.४१)
अवियत्यं सव्वदरसीहिं। अवियप्प वि [अविकल्प] भेद रहित, संशयादि रहित।
(पंचा.१५९, मो.४२) अवियपं कम्मरहिएण। (मो.४२) अवियार वि [अविकार] 1.विकार रहित, परिवर्तन रहित।
(भा.११०) 2. वि [अविचार विचार रहित, विकल्प रहित। अविरइ/अविरदि स्त्री [अविरति] पापकर्मो से अनिवृत्ति, दुष्कर्मों में प्रवृत्ति । (स.८७,८८) अविरमण वि [अविरमण] अविरति। (स.१६४) मिच्छत्तं
अविरमणं। अविरय वि [अविरत] अविच्छिन्न, निरन्तर, पापकर्मों से निवृत्ति रहित। अविरयभावो य जोगो य (स.१९०) अविरुद वि [अविरुढ] अतिदृढ नहीं। (पंचा.१०७) अविरुद्ध वि [अविरुद्ध] अविरूद्ध, ठीक, अनुकूल, अविपरीत। (पंचा.५४) अण्णोण्ण विरुद्धमविरुद्धं । (पंचा.५४) अविवरीद वि [अविपरीत] यथार्थ, विपरीत से रहित। (स.१८३)
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