Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti

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Page 359
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 346 उपभोग से उत्पन्न होने वाला। सुहोवओगप्पगेहिं भोगेहिं। (प्रव.७३) -उवजुत्त वि [उपयुक्त] शुभ से सहित, अच्छे परिणामों से युक्त। सुहोवजुत्ता य होति समयम्मि। (प्रव.चा.४५) कर पुं नकर्मन् शुभकर्म,अच्छे कर्म। (स.१४५,भा.११८) सुहकम्मं भावसुद्धिमावण्णो। (भा.११८) -णिमित्त न [निमित्त] शुभकारण, शुभनिमित्त। कल्लाणसुहणिमित्तं । (भा.१३५) -धम्म पुं न [धर्म] शुभ धर्म, ध्यान विशेष । सुहधम्मं जिणवरिंदेहि। (भा.७६) -परिणाम पुं [परिणाम] शुभपरिणाम। सुहपरिणामो पुण्णं । (पंचा.१३२) -भत्ति स्त्री [भक्ति शुभभक्ति, पूजा। अरहंते सुहभत्ती सम्मत्तं। (शी.४०) -भाव पुं [भाव] शुभभाव, अच्छे विचार। सुहभावे सो हवेइ अण्णवसो। (निय.१४४) -भावणा स्त्री [भावना] शुभ चिंतन, शुभभावना। सुहभावणारहिओ। (भा.१२) सुह सक [सुखय्] सुखी करना। कम्मेहिं सुहाविज्जइ। (स.३३२) सुहड पुं [सुभट] योद्धा, वीर। सुहडो संगाम एहिं सव्वेहिं। (मो.२२) सुहिद वि [सुखित] सुखी, सुखयुक्त। (स.२५४-२५६, प्रव.७३) सुहिदो दुहिदो य हवदि जो चेदा। (स.३८९) सुहुम वि [सूक्ष्म] सूक्ष्म, अत्यन्तछोटा, नामकर्म का एक भेद। (पंचा.७६, स.६७, प्रव.जे.४०, निय.२१, सू.२४) सुहुमा हवंति खंधा। (निय.२४) सूई स्त्री [सूची] सूई, सूचिका। सूई जहा असुत्ता। (सू.३) For Private and Personal Use Only

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