Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti

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Page 360
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 47 सूर वि [शूर] पराक्रमी, वीर,शूरवीर। (निय.७४, मो.८९) सूरस्स ववसायिणो। (निय.१०५) सेमपुं स्वेिद] पसीना, स्वेद। सिंहाणखेलसेओ। (बो.३६) सेड सक [सेट] सफेदी करना, पोतना। जह परदद सेडिदि। (स.३६२) सेडिया स्त्री दि] खडिया, सफेदी, कलई, चूना। जह सेडिया दु ण । (स.३५६) सेद 1. देखो से। सेदं खेद मदो। (निय.६) 2. वि श्वेत शुक्ल, सफेद। (स.१५७-१५९) वत्थस्स सेदभावो। (स.१५८) -भाव ' [भाव] श्वेतभाव, सफेदरूप। संखस्स सेदभावो। (स.२२०) सेय न [श्रेयस्] शुभ, कल्याण। (द.१५,१६,भा.७७) सेयासेयं वियाणेदि। (द.१५) सेव सक (सेव् सेवा करना, आराधना करना, आश्रय करना, उपभोग करना। (पंचा.१६४, स.१९७, प्रव.चा.२२, भा.१११, लिं.७) विसयत्यं सेवए ण कम्मरयं। (स.२२७) सेवइ/सेवए सेवदि सेवदे (व.प्र.ए.स.१९७, २२४, २२७, लिं.७) सेवंति (व.प्र.ब.स.४०९) सेवमाण (व.कृ.प्रव.चा.२२) सेवंत (व.कृ.स.१९७) सेवहि (वि. आ.म.ए.भा.१११) सेविदव्व (वि.कृ.पंचा.१६४) सेवग वि सेवक सेवा कर्ता, सेवक, नौकर। असेवमाणो वि सेवगो कोई। (स.१९७) सेवा स्त्री [सेवा] सेवा, भक्ति, श्रुशूषा। उच्छाहभावणासंपसंससेका For Private and Personal Use Only

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