Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti

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Page 357
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 344 (भा.७७)-सुद्धि स्त्री [शुद्धि] शुद्धता,निर्मलता।तिविहसुद्धीएं। (भा.१३५) सुपास पुं[सुपार्श्व] सातवें तीर्थङ्कर, सुपार्श्वनाथ। (ती.भ.३) सुभ न [शुभ] शुभ, मङ्गल, कल्याण। -जोग पुं योग] शुभयोग। सुभजोगेण सुभावं। (मो.५४) । सुमइ पुं [सुमति] सुमतिनाथ, पाँचवें तीर्थङ्कर। (ती.भ.३) सुय 1. देखो सुअसुद। 2. पुं [सुत] पुत्र,लड़का। सुयदाराईविसए। (मो.१०) सुयकेवलि पुं [श्रुतकेवलिन्] श्रुतकेवली, द्वादशाङ्ग का ज्ञाता। (स.९, प्रव.३३) जम्हा सुयकेवली तम्हा। (स.१०) सुयणाण न [श्रुतज्ञानशास्त्रज्ञान,सिद्धान्तज्ञान,श्रुतज्ञान, ज्ञान का एक भेद। (स.१०, भा.९२) विसुद्धभावेण सुयणाणं। (भा.९२) सुर पुं [सुर] देव, देवता, अमर। (पंचा.११७,प्रव.१,निय.१७, द.३३, सू.११, भा.१) णरणारयतिरियसुरा। (प्रव. ७२) -गण पुं [गण] देवसमूह। (निय.१७) -गिरि पु [गिरि सुमेरु पर्वत। सुगिरीव णिक्कंपं। (मो.८६) -च्छरा स्त्री [अप्सरा] स्वर्गदेवी। सुरच्छरविओयकाले। (भा.१२) -णिलय पुं [निलय] स्वर्गलोक, देवों का आवास। सुरणिलयेसु सुरच्छअविओयकाले। (भा.१२) -धणुन [धनुष्] इन्द्र धनुष । सुरधणुमिव सस्सयं ण हवे। (द्वा.४) -लोग/लोय पुं [लोक स्वर्गलोक।सो सुरलोगं समादियदि। (पंचा.१७१) -वर पुं [वर सुरेन्द्र,देवेन्द्र। सुरवरजिणगणहराइ सोक्खाई। (भा.१६०) For Private and Personal Use Only

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