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299 वेअपुं विद] कर्म विशेष, मोहनीय कर्म का एक भेद। (बो.३२) वेउबिअ वि वैक्रियिक अनेक प्रकार की प्रक्रिया करने वाला,
शरीर विशेष। (प्रव.जे.७९) देहो वेउविओय तेजयिओ। वेज्ज पुं [वैद्य] चिकित्सक, भिषक्, वैद्य। वेज्जो पुरिसो ण
मरणमुवयादि। (स.१९५) वेज्जावच्च देखो विज्जावच्च । वेज्जावच्चणिमित्तं । (प्रव.चा.५३) वेज्झ वि [वेद्य जानने योग्य , अनुभव करने योग्य । जिणभवणं अह वेझं । (बो.४२) वेज्झय वि विद्यक अभ्यास करने योग्य , अनुभव करने योग्य। (बो.२०) -विहीण वि [विहीन ] अभ्यास से रहित,अनुभव मे रहित। रहिओ कंडस्स वेज्झयविहीणो। (बो.२०) वेणइय न वैनयिक मिथ्यात्व विशेष, सभी धर्मों एवं सभी देवों पर विश्वास करना। (भा.३२) वेणइया होति बत्तीसा। (भा.१३६) वेद पुं वेद वेदनीय, कर्म का एक भेद। (पंचा.१५३) वेद/वेय सक [वेद्य] अनुभव करना, भोगना। (पंचा.५७, स.३८७, शी.१६) जो वेददि वेदिज्जदि। (स.२१६) वेददि वेदेदि वेदयदि (व.प्र.ए.स.२१६,३१६,८५) वेदिज्जदि (व.प्र.ए.स.२१६) वेदंत वेदयमाण (व.कृ.स.३८८, पंचा.५७) वेदेऊण (सं.कृ.शी.१६) तं चेव पुणो वेयइ। (स.८४) वेदग वि वेदक] भोगने वाला, अनुभव करने वाला। ण वि तेसिं
वेदगो आदा। (स.१११) वेदणा/वेयणा स्त्री [वेदना] पीड़ा, कष्ट, वेदना। (प्रव.७१,
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