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प्रशंसा एवं निंदा समान हो, पत्थर और स्वर्ण एक समान हो तथा जो जीवन और मरण में समभाव वाला हो, वह श्रमण है। -मुहुग्गदमट्ठ पुं [मुखोद्गतार्थ] श्रमण के मुख से उत्पन्न अर्थ । (पंचा. २) -लिंग न [लिङ्ग] श्रमणलिंग, श्रमणचिह्न। वोच्छामि समणलिंग। (लिं.१) समणी स्त्री [श्रमणी] श्रमणी, आर्यिका, साध्वी।
(प्रव.चा.ज.व.२५) समणीओ तस्समाचारा। समत्त वि [समस्त] परिपूर्ण, सम्पूर्ण। जादं सर्य समत्तं । (प्रव.५९) समद वि [समतः] समानता, सदृशता। समदो दुराधिगा जदि। (प्रव.जे.७३) समदा वि [समता] साम्यभाव,रागद्वेष का अभाव समदारहियस्स।
समणस्स। (निय.१२४) समद्दव वि [स्वमार्दव निजमृदुता, स्वकीय मार्दव । (निय.११५)
समद्दवेणज्जवेण मायं च । (निय.११५) समधि सक [सम्+अधि] अध्ययन करना, ज्ञान करना। (प्रव.८६)
तम्हा सत्यं समधिदव्वं । (प्रव.८६) समधिदव्व (विकृ.प्रव.८६) समभिहद वि [श्रमाभिहत] श्रम से खिन्न। (प्रव.चा.३०) समभुत्ति स्त्री [समभुक्ति] सम्यक् आहार, अच्छा भोजन। समभुत्ती
एसणासमिदी। (निय.६३) समय पुं [समय] 1.काल, अवसर। (पंचा.१६७,स.१७०, प्रव.शे.४९, भा.३५, निय.३१) समयस्स सो वि समयो। (प्रव.जे.५०) 2. आत्मा। समयमिणं सुणह बोच्छामि। (पंचा.२)
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