Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
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340 श्रद्धान, समीचीनमत। सुदंसणे सद्धा। (चा.१४) -वाण न दान अच्छादान |सुदाणदच्छाए। (चा.११) -धम्म पुं न [धर्म] श्रेष्ठ धर्म, उत्तम धर्म। संजमं सुधम्म च। (बो.१३) -परिमल पुं [परिमल] श्रेष्ठ सुगन्ध। अइसयवंतं सुपरिमलामोयं। (बो.३८) -पसिब वि प्रसिद्ध] अधिक विख्यात। संजमचरणस्स जइ व सुपसिद्धा। (चा.९) -भाव पुं भाव] अच्छाभाव। लभइ बोही सुभावेण । (भा.७४) -मरण न [मरण] सम्यक् मरण | भावहि सुमरणमरणं । (भा.३२) -मलिण न [मलिन अत्यन्त मलिन। सुमलिणचित्तो। (भा.१५४) -मुक्ख पुं [मोक्ष] श्रेष्ठ मुक्ति। जिणसम्मत्तं सुमुक्खठाणा य। (चा.८)-लक्खण न [लक्षण] अतिशय लक्षण । सहसट्ट सुलक्खणेहिं संजुत्तो। (द.३५) -विसुब वि [विशुद्ध] अत्यन्त पवित्र। (चा.४१, बो.३९, भा.६०) कसायमलवज्जिओ य सुविसुद्धो। (बो.३९) -विहिअ [विहित] अच्छी तरह कहा गया। अविणयणरा सुविहियं। (भा.१०४) -वीयराय वि वीतराग] राग रहित, क्षीण राग। संजमसुद्धं सुवीयरायं च। (बो.१५) -संजम पुं संयम] उत्तमव्रत। सुतवे सुसंजमे भावे। (चा.१६) -हाव पुं [भाव] अच्छा भाव। सुहावसंजुत्तो। (भा.६१) सुअन [श्रुत] 1. शास्त्र विशेष, आगम, सिद्धान्त | सुअगुण सुअत्यि रयणत्तं। (बो.२२) 2. श्रुतज्ञान, ज्ञान का एक भेद। -गाणि वि [ज्ञानिन्] श्रुतज्ञानी, शास्त्रों का जानकार! सुअणाणि भद्दबाहू। (बो.६१)
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