Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti

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Page 352
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 339 द.१६, भा.१२०, शी.१) विषयों से विरक्त होना शील है। शीलं विसयविरागो। (शी.४०) -कुसल वि [कुशल] शील, सम्पन्न, शील में निपुण। लावण्णसीलकुसलो। शी.३६) -गुण पॅन [गुण] शीलगुण। सीलगुणमंडिदाणं। (शी.१७) -फल न [फल] शीलफल। (द.१६) -मंत वि [मन्त] शीलवान्। (शी.२४) -वंत वि [वन्त] शीलवान्। (द.१६) -वद न [व्रत] शीलव्रत सीलवदणाणरहिदा। (शी.१४) -सलिल पुंन सलिल शीलरूप जल। (शी.३८) -सहाव पुं [स्वभाव] शीलस्वभाव। सीलसहावं हि कुच्छिदं गाउं। (स.१४९) -सहिय वि [सहित] शीलसहित। तवविणयसीलसहिदा। (शी.३५) सीस देखो सिस्स। (बो.६०,लिं.१८) णेहं सीसम्मि वट्टदे बहुसो। (लिं.१८) सीह ' [सिंह] केशरी, मृगराज, शेर। उक्किट्ठसीहचरियं । (सू.९) सु अ [सु] अतिशय, योग्यता, समीचीनता, अनुपम । (बो.१३, चा.४१,भा.१५४,मो.८६)-इच्छिय वि[इच्छित] अच्छी तरह चाहा गया। लहंते ते सुइच्छियं लाह। (चा.४२)-कयत्य वि [कृतार्थ] कृतकृत्याते धण्णा सुकयत्था। (मो.८६)-ग्गइ स्त्री [गति] अच्छी गति। सद्दव्वादो हु सुग्गई हवइ। (मो.१६) -चरित्त/चारित्त न [चरित्र चारित्र निर्मल चारित्र । झाणरया सुचरित्ता। (मो.८२) -णिम्मल वि निर्मल] अत्यन्त निर्मल। सुणिम्मलं सुरगिरीव। (मो.८६) -तव पुं न [तपस्] श्रेष्ठतप । सुतवे सुसंजमे सद्धा। (चा.१६) -दंसण न दर्शन] सम्यक् For Private and Personal Use Only

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