Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
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41 सुइर वि [सुचिर] पवित्र, निर्मल। जीवेण भाविया सुइरं। (निय.९०) -काल पुं न [काल] बहुत समय तक। भुत्ताई सुदूरकालं। (भा.९) सुंदर वि [सुन्दर] मनोहर, अच्छा। जिंदंति सुंदरं मग्गं।
(निय.१८५) सुक्क न [शुक्ल] 1. शुभध्यान, ध्यान का एक भेद। (निय.१२३) -झाण न [ध्यान] शुक्ल ध्यान। धम्मझाणेण सुक्कझाणेण। (निय.१२३) 2. पुं [शुक्ल] सफेद, श्वेत। तइया सुक्कत्तणं पजहे। (स.२२२) -त्तण वि [त्व] शुक्लपना, सफेदी। (स.२२२) 3. पुं [शुक्र] वीर्य, धातु विशेष । मंसट्ठिसुक्कसोणिय। (भा.४२) सुक्ख न [सौख्य] सुख, आनन्द। (पंचा.१२२, निय.१७८, भा.६०) सुक्खाइंदुहाई दव्वसवणो य। (भा.१२६) -भायणपुंन [भाजन] सुख का पात्र। दिव्वसिवसुक्खभायणो। (भा.७४) सुजणत्त वि [सुजनत्व] मनुष्यत्व। फलं अणुहवेइ सुजणत्ते।
(निय.१५७) सुठु अ [सुष्ठु] अच्छा, भली प्रकार, सुन्दर। (पंचा.२०, १४१,
द.५, स.३१७, भा.१३७)जीवेण सुठु अणुबद्धा। (पंचा.२०) सुन सक [श्रु] सुनना। (पंचा.९५, स.३६०, प्रव.६२, निय.५४,
बो.२, भा.६६, मो.१०६) समयमिमं सुणह वोच्छामि। (पंचा.२) सुणइ (व.प्र.ए.मो.१०६) सुण सुणसु (वि. आ. म.ए.स.३६०,
३७५) सुणिदूण (सं.कृ.प्रव.६२) सुणंत (व.कृ.पंचा.९५) सुणह पुं स्त्री [शुनक] कुक्कुर, कुत्ता। सुणहाण गद्दहाण य।
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