Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti

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Page 334
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 321 3. आगम, सिद्धान्त, मत। समयस्स वियाणया विंति। (स.३७) -सार पुं न [सार] समयसार, ग्रन्थ विशेष, परमार्थग्रन्थ। (स.१४२) जो सब नयपक्षों से रहित है वह समयसार है। (स.१४४) समवत्ति पुं[समवर्तिन्] तादात्म्य सम्बन्ध, धारावाही। (पंचा.५० समवाअ/समवाय पुं समवाय] सम्बन्धविशेष,सम्मिलन, संपर्क, अविच्छेद्यसंयोग। (पंचा.४९, प्रव.१७) गुण एवं गुणी के बीच अनादि काल से जो समवर्तित्व तादात्य सम्बन्ध पाया जाता है, वह समवाय है। (पंचा.५०) समवत्ती समवाओ। समवेद वि [समवेत] समुदित, एकमेक। समवेदं खलु दव्वं| (प्रव.शे.१०) समवण्ण वि [समापन्न] संयोग, संप्राप्त। समवण्णा होइ चारित्तं। (चा.३) समस्सिद वि [समाश्रित] आश्रय में स्थित, आश्रित। फासेहिं समस्सिदे सहावेण। (प्रव.६५) समाण वि [समान] सदृश, तुल्य। (पंचा.९६, द.२६) दोण्णि वि होति समाणा। (द.२६) -परिणाम न [परिणाम] समान परिणाम, सदृशमाप। अपुणब्भूदा समाणपरिणामा। (पंचा.९६) समादद सक [समा+दा] ग्रहण करना, स्वीकार करना, अङ्गीकार करना। (पंचा.९९,१७१) चित्तं उभयं समादियदि। (पंचा.९९) समावण पुं [श्रमापनक] थकावट दूर करने वाला। समणेसु समावणओ। (प्रव.चा.४७) For Private and Personal Use Only

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