Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
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332 (स.१३९) सहज वि [सहज] स्वाभाविक, नैसर्गिक। (प्रव.६३, भा.११, द.२४) आगंतुअमाणसियं सहजं। (भा.११) -उप्पण्ण वि [उत्पन्न] स्वाभाविक रूप से उत्पन्न। सहजुप्पण्णं रूवं। (द.२४) सहस/सहस्स पुंन [सहस्र] हजार, संख्याविशेष। (द.३५, भा.२८) -कोडि स्त्री [कोटि] हजारों करोड़। (द.५) -8 वि [अष्ट] एक हजार आठ। सहस? सुलक्खणेहिं संजुत्तो। (द.३५) -वार पुं [बार हजारों बार, हजारों समय । छावट्टिसहस्सवारमरणाणि। (भा.२८) सहाव पुं [स्वभाव] प्रकृति, निसर्ग। (पंचा.१५८, स.१९८, प्रव०३३, निय.१०, भा.१५३) कम्मसहावेण भावेण | (पंचा.६२) -गुण पुंन [गुण] स्वभाव गुण । तं हवे सहावगुणं । (निय.२७)-ठाण न [स्थान] स्वभावस्थान। (निय.३९) उवसमणे सहावठाणा वा।(निय.४१)-णाण न [ज्ञान स्वभाव ज्ञान। (निय.१०,११) असहायं तं सहावणाणं त्ति। (निय.११) -णियद वि [नियत अपने स्वभाव में स्थित। जीवो सहावणियदो। (पंचा.१५५) -पज्जाय पुं [पर्याय] स्वभाव पर्याय । परिणामो सो सहावपज्जायो। (निय.२८) -पयडि स्त्री [प्रकृति] स्वभाव प्रकृति। कमलिणिपत्तं सहावपयडीए। (भा.१५३) -समयविद वि [समवस्थित स्वभाव में स्थिर रूप। सहावसमयट्ठिदो त्ति संसारे। (प्रव.जे.२८) -सिद्ध वि [सिद्ध] स्वभाव से निष्पन्न, स्वभाव में प्रतिष्ठित । सोक्खं सहावसिद्धं। (प्रव.७१)
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