Book Title: Kundakunda Shabda Kosh
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Digambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti

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Page 349
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 336 सिक्खावय चत्तारि। (चा.२३) सिग्ध न [शीघ्र] शीघ्र, जल्दी, तुरन्त। पच्छा पावइ सिग्छ । (निय.१७५) सिज्झ अक [सिघ्] सिद्ध होना, निष्पन्न, बनना, मुक्त होना। (प्रव.चा.३७, सू.२३, निय.१०१, द.३, मो.८८, द्वा.९०) मूलविणट्ठा ण सिझंति। (द.१०) सिज्झदि। सिज्झइ (व.प्र.ए.भा.४, निय.४, निय.१०१) सिझंति (व.प्र.ब.द.३) सिज्झिहदि (भवि.प्र.ए.दा.९०) सिज्झिहहि (भवि. वि. आ.म.ए.मो.८८) सिद्ध वि [सिद्ध] 1. मुक्त, कृतकृत्य, निर्वाण प्राप्त। (पंचा.१३६, स.२३३, प्रव.४, नि.७२, बो.१२, भा.१)शरीर से रहित सिद्ध हैं। देहविहूणा सिद्धा। (पंचा.१२०) -अंत पुं [अन्त] आगम, शास्त्र, सिद्धान्त। (स.३२२,३४७) जस्स एस सिद्धंतो। (स.३४८) -आयदण न [आयतन] सिद्धायतन,जो विशुद्ध ध्यान तथा केवलज्ञान से युक्त हैं ऐसे जिस मुनिश्रेष्ठ के शुद्ध आत्मा की सिद्धि हो गई है,उस समस्त पदार्थों को जानने वाले केवलज्ञानी को सिद्धायतन कहा है। (बो.६) -आलय स्त्री न [आलय] सिद्धस्थान,सिद्धशिला। ते सिद्धालयसुहं जंति। (शी.३८)। -ठाण न स्थान] सिद्धस्थान, मुक्तिस्थान । सिद्धठाणम्मि (बो.१२) -प्पा पुं[आत्मन्] सिद्ध आत्मा, मुक्त आत्मा। जारिसिया सिद्धप्पा। (निय.४७) भत्ति स्त्री [भक्ति] सिद्धभक्ति। [स.२३३] -सहाव पुं [स्वभाव सिद्ध स्वभाव | सव्वे सिद्धसहावो। (निय.४९) 2. For Private and Personal Use Only

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